RAJESH BADAL
RAJESH BADAL

पिछले 42 साल से रेडियो,प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल में पत्रकारिता कर रहे हैं। सौ से अधिक डाक्यूमेंट्री का निर्माण कर चुके हैं। टीवी पत्रकारिता में पहली बार बायोपिक की व्यवस्थित शुरुआत करने का काम किया। पचास से अधिक बायोपिक के निर्माता,प्रस्तुतकर्ता और एंकर। क़रीब दस चैनलों की शुरुआत। आजतक में संपादक,वॉइस ऑफ इंडिया में मैनेजिंग एडिटर व समूह संपादक, इंडिया न्यूज में न्यूज़ डायरेक्टर, बीएजी फिल्म्स में कार्यकारी संपादक,सीएनईबी में एडिटर-इन-चीफ और राज्यसभा टीवी के संस्थापक एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर-आठ साल तक रह चुके हैं।
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पिछले 42 साल से रेडियो,प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल में पत्रकारिता कर रहे हैं। सौ से अधिक डाक्यूमेंट्री का निर्माण कर चुके हैं। टीवी पत्रकारिता में पहली बार बायोपिक की व्यवस्थित शुरुआत करने का काम किया। पचास से अधिक बायोपिक के निर्माता,प्रस्तुतकर्ता और एंकर। क़रीब दस चैनलों की शुरुआत। आजतक में संपादक,वॉइस ऑफ इंडिया में मैनेजिंग एडिटर व समूह संपादक, इंडिया न्यूज में न्यूज़ डायरेक्टर, बीएजी फिल्म्स में कार्यकारी संपादक,सीएनईबी में एडिटर-इन-चीफ और राज्यसभा टीवी के संस्थापक एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर-आठ साल तक रह चुके हैं।


लगातार मिल रहे इस तरह के संकेतों को संयुक्त कर देखें तो साफ है कि अब हमें अपना घर ठीक करने की नौबत आ गई है

राजेश बादल 4 years ago

जब न्याय विलंब से मिलता है या चांदी के सिक्कों में खरीदा-बेचा जाता है तो समाज सड़कों पर अपने तरीके से मुजरिम को सजा देता है

राजेश बादल 4 years ago

सिर्फ अपने गाल बजाने के लिए अपने आप को हम चौथा स्तंभ कहते हैं, अन्यथा कोई भी संवैधानिक प्रावधान हमें चौथे खंभे के रूप में संरक्षण नहीं देता

राजेश बादल 4 years ago

राजनीति में किसी भी घटना के अनेक पहलू होते हैं। पत्रकार के रूप में काम करते हुए हर कदम पर इन पहलुओं का ध्यान रखना पड़ता है

राजेश बादल 4 years ago

इसमें न किसी बदनामी का खतरा है और न इसे आप पीत पत्रकारिता कह सकते हैं। ऐसी स्थिति में पुरानी पीढ़ी के अनेक पत्रकारों में नई चिंता देखी गई है

राजेश बादल 4 years ago

मेरा मानना है कि लोकतंत्र के गुलदस्ते में हर विचारधारा के फूल खिलते हैं

राजेश बादल 4 years ago

आज भी हमारे कई मीडिया शिक्षा संस्थान ऐसे मामलों की कवरेज का व्यावहारिक, नैतिक और सैद्धांतिक पक्ष नहीं पढ़ाते

राजेश बादल 4 years ago

मीडिया और अवाम अपने कंधों का इस्तेमाल न होने दे तो ही इस तरह की स्थिति पर कुछ लगाम लग सकती है

राजेश बादल 5 years ago

बुद्धिजीवियों का कहना है कि इन नए विधानों के जरिए सरकार ने अपने चारों ओर कवच बना लिया है

राजेश बादल 5 years ago

इन दिनों मीडिया के अनेक अवतार दिनों दिन अपने आधुनिकतम रूपों में दिख रहे हैं

राजेश बादल 5 years ago

बीते दिनों बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत आईं थीं। चैनलों में से कितने ऐसे थे, जिन्होंने समझौतों के अलावा परदे के पीछे की सियासत का विश्लेषण किया?

राजेश बादल 5 years ago

वे सरकार के उस फ़रमान को नही मानते, जिसमें कहा गया था कि सरकार की अनुमति के बिना कोई समाचारपत्र नहीं निकाल सकता। साथ ही एक शब्द भी बिना अनुमति के नहीं छप सकता...

राजेश बादल 5 years ago

मीडिया शिक्षण संस्थान अभी तक अध्ययन में गुणवत्ता पर अधिक गंभीरता नहीं दिखाते थे। लेकिन बीते एक बरस से ऐसे आयोजन  लगातार मंथन कर रहे हैं

राजेश बादल 5 years ago

सितंबर में हिंदी पर केंद्रित अनेक कार्यक्रम होते हैं, लेकिन यह माह निकलने के बाद जैसे हमारा हिंदी प्रेम गहरी नींद में चला जाता है

राजेश बादल 5 years ago

 पत्रकारिता अभिव्यक्ति का माध्यम है। पेशा नहीं। यह दाल रोटी की जुगाड़ का ज़रिया हो सकता है

राजेश बादल 5 years ago

केंद्रीय गृह मंत्रालय के पिछले चालीस साल के परिपत्र देखिए। ऐसा लगता है कि सबकी होली जला दी गई है।

राजेश बादल 5 years ago

प्रेस काउंसिल उन माध्यमों पर बंदिश लगाए जाने की वकालत कैसे कर सकती है, जो उसके कार्यक्षेत्र से बाहर हैं

राजेश बादल 5 years ago

वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने उठाया बड़ा सवाल, हम वह व्यवहार किसी के साथ क्यों कर रहे हैं, जो हमें अपने लिए स्वीकार नहीं

राजेश बादल 5 years ago

वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने उठाया सवाल, एक ही संस्थान में एक समाचार प्रसारण के कितने पैमाने हो सकते हैं?

राजेश बादल 5 years ago

अनुच्छेद 370 की विदाई कोई आसान काम नहीं था। कमोबेश हर दल इसके पक्ष में था, लेकिन सत्ता में रहते हुए उसे हटाने का साहस कोई नहीं कर पाया

राजेश बादल 5 years ago